Friday, July 31, 2015

हिंदी भाषा - अपनी भाषा ...



साहित्य के इस मंच पे मेरे सभी साथीगण को मेरा सहर्ष अभिवंदन . लम्बे अरसे से मन में ये उद्गार उत्पन हो रहा था की मैं एक ऐसे मंच का सञ्चालन करू जहा पे साहित्य प्रेमी कुछ अध्यन कर सके और अपने विचारो से मुझे भी अवगत कराते रहे. यह मेरा प्रथम प्रयास है की मैं आपलोगो के समक्ष कुछ अच्छी लेखन को पेश करता रहू और अपने विचारो से आपलोगो को अवगत कराता रहू. आज के इस दौर में हिंदी धीरे धीरे प्रासंगिक होते जा रही है और इसका महत्व देशव्यापी रूप पे घटता जा रहा है. आज के इस तकनिकी दौर में अंग्रेजी भाषा ने सभी भाषाओ को विस्थापित कर दिया है. मेरी समझ से ये उचित नहीं है. हम चाहे जिस भी दौर में हो हमें अपनी भाषा का महत्व समझना होगा और इसपे अमल भी करना होगा. हिंदी को मात्र मजबूरी समझ कर ना पढ़े. हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं बल्कि हमारी जीवन शैली को भी प्रदर्शित करती है. हमें अपनी भाषा से प्रेम करना होगा, इसके महत्व को समझना होगा. इसे जीवन क हर अंग में शामिल करना होगा. इसे मजबूरी ना समझे. इसको जीने का प्रयास करे. ये हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का परिचायक है. हिंदी को महत्व देकर हमें उन महान हस्ती को श्रद्धांजलि देना चाहिए. विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में हिंदी के विद्यार्थियों की संख्या वक़्त के साथ साथ घटते जा रही है. विकास की ओर अग्रसर होने का तात्पर्य ये नहीं की हम अपनी भाषा का बलिदान कर दे. विकास में हमें हिंदी को भी भागीदार बनाना होगा. इसको जीवन के हर अंग में शामिल करना होगा. हिंदी हम सब की जनक है. हिंदी हमारे जीवन का अभिन्न अंग है. हिंदी के प्रति प्रेम मातृप्रेम के समकक्ष है. आओ सारे मिलकर हिंदी की ओर बढ़े. इसे नई उंचाई प्रदान करे और एक नया आयाम दे. हिंदी के उत्थान के लिए जिन्होंने ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया उनके प्रयासों को जीवित रखे और आगे लेकर चले. हिंदी को अपनाने में और प्रेम करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए क्युंकि हिंदी हैं हम और हिन्दुस्ता हैं वतन हमारा.

जय हिन्द, जय हिंदी....

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